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संस्कृति और सभ्यता का महत्व | Importance of Culture and Civilization in hindi

manav jivan sanskriti evam sabhyata

संस्कृति और सभ्यता का महत्व | Importance of Culture and Civilization in hindi

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जीवन को परिस्कृत कर उसे वास्तविक रूप सौंदर्य प्रदान करने वाली मान्यताओं, स्थापनाओं और मूल्यों का समूह है संस्कृति। दूसरे शब्दों में कहे तो मानव कल्याण में सहायक समस्त ज्ञानात्मक, भावनात्मक और क्रियात्मक महनीय कार्य संस्कृति कहलाते है। ये कार्य मानव सभ्यता को मानवता के शिखर पर पहुंचते है। इन कार्यो से मानव सभ्यता की उम्र निर्धारित होती है। संस्कृति किसी देश की आत्मा है, जिसके बिना वह निर्जीव है।

संस्कृति शब्द का अर्थ: संस्कृति किसी भी देश, जाति और समुदाय की आत्मा होती है। संस्कृति से ही देश, जाति या समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों, आदि का निर्धारण करता है। अतः संस्कृति का साधारण अर्थ होता है-संस्कार, सुधार, परिष्कार, शुद्धि, सजावट आदि।

किसी देश की संस्कृति वहां के पूर्वजो की त्याग - तपस्या और उनकी उर्वर बौद्धिक शक्ति का परिणाम होती है। उनके दीर्घ अनुभव उसे संजीवनी प्रदान करते है।

संस्कृति विचारो का आदान प्रदान है,जो निरन्तर चलता रहता है,क्योकि संस्कृति का वितरण पीढ़ी दर पीढ़ी द्वारा चलने का अनुशरण हैं। संस्कृति वह सोच है,जो समयानुसार बढ़ती चली जाती है।

यह आश्रित प्रणाली के अंतर्गत कार्य करती है, जो निंरन्तरता का रूप कहलाती है,संस्कृति को अनेकता में एकता का प्रतीक माना जाता हैं। क्योकि भारत में विभिन्न रीती -रिवाज, अचार व्यवहार और तीज-त्यौहारों के बाबजूद भारत एकता का प्रतीक कहलाया जाता है।

 इस दुनिया में लोग तीन प्रकार से जीवन जीते है। कुछ अपनी प्रकृति में , कुछ विकृति में और कुछ अपनी संस्कृति में। जैसे - खुद का खाना प्रकृति है तो दुसरो का छीनकर खाना विकृति, परन्तु दूसरों को खिलाकर खाना हमारे देश की संस्कृति है।

आज के समय में सभ्यता और संस्कृति को एक-दूसरे का पर्याय समझा जाने लगा है जिसके फलस्वरूप संस्कृति के संदर्भ में अनेक भ्रांतियाँ पैदा हो गई हैं। लेकिन वास्तव में संस्कृति और सभ्यता अलग-अलग होती है।

सभ्यता का अर्थ: सभ्यता का संबंध हमारे बाहरी जीवन के ढंग से होता है यथा- खान-पान, रहन-सहन, बोलचाल आदि जबकि संस्कृति का संबंध हमारी सोच, चिंतन और विचारधारा से होता है।

संस्कृति और सभ्यता मे अंतर: संस्कृति का क्षेत्र सभ्यता से कहीं अधिक व्यापक और गहन होता है। सभ्यता का अनुकरण किया जा सकता है लेकिन संस्कृति का अनुकरण नहीं किया जा सकता है ।

उपर्युक्त अंतर से स्पष्ट है कि दोनों के क्रियाकलाप अलग-अलग हैं और दोनों परस्पर जुड़े हुए भी हैं। सभ्यता में मनुष्य के राजनीतिक, प्रशासनिक, आर्थिक, प्रौद्योगिकीय व दृश्य कला रूपों का प्रदर्शन होता है जो जीवन को सुखमय बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

जबकि संस्कृति में कला, विज्ञान, संगीत, नृत्य और मानव जीवन की उच्चत्तर उपलब्धियाँ सम्मिलित हैं। अतः यही कहा जा सकता है कि सभ्यता वह है जो हम बनाते हैं तथा संस्कृति वह है जो हम हैं

भारतीय संस्कृति (Indian culture) – इसका इस्तेमाल आमतौर पर भारतीय उप-महाद्वीप के देशों की संस्कृति के लिए किया जाता है। इसकी खासियत है अपनी समृद्ध परंपराओं को साथ लेकर आज की मान्यताओं एवं धारणाओं के साथ आगे बढना।

पूर्वी संस्कृति (Eastern culture) – पूर्वी संस्कृति आम तौर पर सुदूर पूर्व एशिया (चीन, जापान, वियतनाम, उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया सहित) और कुछ हद तक भारतीय उपमहाद्वीप के देशों के सामाजिक मानदंडों को संदर्भित करती है। पश्चिम की तरह, पूर्वी संस्कृति अपने प्रारंभिक विकास के दौरान धर्म और साथ ही कृषि कार्यों से काफी प्रभावित रही है। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कृषि एक मूल तत्व है।

अफ्रीकन संस्कृति (African culture) – भारतीय उप-महाद्वीप की संस्कृति की तरह ही अफ्रीकी संस्कृति न केवल राष्ट्रीय सीमाओं के बीच, बल्कि उनके भीतर भी भिन्न होती है। इस संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं में से एक महाद्वीप के 54 देशों में बड़ी संख्या में जातीय समूह हैं। उदाहरण के लिए, अकेले नाइजीरिया में 300 से अधिक जनजातियां हैं। इसीलिए पूरे अफ्रीका के संस्कृति को एक ही साँचे में डालना बहुत मुश्किल है।

लैटिन संस्कृति (Latin Culture) – Latin Culture को आमतौर पर मध्य अमेरिका, दक्षिण अमेरिका और मैक्सिको के उन हिस्सों के रूप में परिभाषित किया जाता है जहां स्पेनिश या पुर्तगाली प्रमुख भाषाएं हैं। ये सभी स्थान स्पेन या पुर्तगाल के उपनिवेश थे। इसीलिए यहाँ की संस्कृति में कैथीलिक परंपराओं के साथ-साथ वहाँ की स्थानीय संस्कृति और अफ्रीकियों द्वारा लाए गए संस्कृति का मिश्रण मिलता है।

मध्य पूर्वी संस्कृति (Middle Eastern culture) – मोटे तौर पर, मध्य पूर्व में अरब प्रायद्वीप के साथ-साथ पूर्वी भूमध्यसागरीय क्षेत्र शामिल है। यह क्षेत्र यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और इस्लाम का जन्मस्थान है और अरबी से हिब्रू से तुर्की से पश्तो तक दर्जनों भाषाओं का घर है। विषम मौसमी परिस्थिति और आम जीवन पर शरिया कानून के प्रभाव के कारण यहाँ की संस्कृति एक अलग ही रूप में उभर कर आती है।

भारतीय संस्कृति का प्रसार 

संस्कृति का प्रसार करने के लिए सभ्यता का होना भी आवश्यक हैं, भारतीय संस्कृति को बनाने और बनाये रखने में भारतीयो एक बहुमुल्ये योगदान है। जिस काल से संस्कृति का प्रसार होता आया है, उस काल के भारतीयों को ज्ञान था की पूर्वी द्धीप-समहु मसालों और स्वर्ण के खानों आदि भारतीय नागरिक अपने व्यापारों के कार्य के सम्बंद में एक शहर से दूसरे शहर जाना आना हुआ करता था। जिसके अनेक जातियों का ज्ञान होता और सभ्यता को आगे बढ़ाने और नई नई चीज़ों सीखने का अवसर मिलता था। जो संस्कृति क्र प्रसार में योगदान देता हैं।

भारत में संस्कृति का विकास तो राजा महाराजा के ज़माने होता आया हैं, जब से संस्कृति की नींव रखी गयी हैं,तब से प्रत्येक भारतीय नागरिक ने विकास को ध्यान रखते हुए अपनी पीढ़ियों में संस्कृति के गुण का समावेश किया और अपनी संस्कृति का विकास करने के लिए प्रोतसाहित करते रहे और इसी परंपरा का नियम अनुसार पालन करने संस्कृति का विकास निरंतर होता जाता हैं,फलसवरूप हमारा भारत देश संस्कृति के नाम से प्रशिद्ध हैं, कुछ देश हमारे देश की संस्कृति का पालन करके अथार्त उसको अपने जीवन में उतारकर अपने जीवन को सभ्य बनाने का प्रयास करते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी सभ्यता में परिवर्तन होता है,लेकिन देश की संस्कृति स्थिर रहती है, संस्कृति में सिर्फ विकास किया जाता हैं, बिना कोई परिवर्तन के जबकि सभ्यता में परिवर्तन किया जा सकता हैं, और परिवर्तन होता रहता है, भारत में 13वी से 15वी शताव्दी से संस्कृति का विकास होता आ रहा है।

 

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