Blog Open

महात्मा गांधी जीवन परिचय, इनसे जुड़ी पूरी कहानी हिन्दी में (गांधी जयंती) | Mahatma Gandhi biography in hindi

mahatma gandhi full biography in hindi

महात्मा गांधी को कौन नहीं जानता, बच्चे-2 से लेकर हर एक इंसान इनको अच्छे से जानता है, ऐसे महापुरुष (Mahatma Gandhi Biography) के जीवन परिचय की पूरी जानकारी, जिन्होने भारत जैसे विशाल देश को आजादी देकर गये हैं इनके द्वारा किए गए संघर्स, महात्मा गांधी की फैमिली, इनसे जुड़ी पूरी खबर इस आर्टिकल में कवर किए हैं | आज ही के दिन भारत के एक और महापुरुष लाल बहादुर शास्त्री की जयंती भी मनाई जाती है |

                                                       “एक देश में बाँध संकुचित करो न इसको

                                                        गाँधी का कर्त्तव्य छेत्र, दिक् नहीं काल है

                                                        गाँधी है कल्पना जगत के अगले युग की

                                                        गाँधी मानवता का अगला उद्विकास है”

महान वैज्ञानिक Albert Einstein ने गांधी जी के बारे में कहा था कि “भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हांड – मांस से बना व्यक्ति भी कभी इसी धरती पे रहता था | गांधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने अपने समस्त जीवन में सिद्धांतों और प्रथाओं को विकसित करने पर ज़ोर दिया और साथ ही दुनिया भर में हाशिये के समूहों और उत्पीड़ित समुदायों की आवाज़ उठाने में भी अतुलनीय योगदान दिया। साथ ही Mahatma Gandhi ने विश्व के बड़े नैतिक और राजनीतिक नेताओं जैसे- Martin Luther, King Junior, Nelson Mandela और Dalai Lama आदि को प्रेरित किया तथा लैटिन अमेरिका, एशिया, मध्य पूर्व तथा यूरोप में सामाजिक एवं राजनीतिक आंदोलनों को प्रभावित किया।

महात्मा गाँधी जी का मानना था की जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हो, उसे पहले अपने अन्दर लाओ|

महात्मा गाँधी – जीवन परिचय

Mahatma Gandhi Ji ke jeevan parichaya की बात करे तो, गांधी जी का जन्म पोरबंदर की रियासत में 2 अक्टूबर, 1869 में हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी, पोरबंदर रियासत के दीवान थे और उनकी माँ का नाम पुतलीबाई था। गांधी जी अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। मात्र 13 वर्ष की उम्र में गांधी जी का विवाह कस्तूरबा कपाड़िया से कर दिया गया। गांधी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राजकोट से प्राप्त की और बाद में वे वकालत की पढ़ाई करने के लिये लंदन चले गए। यह उल्लेखनीय है कि लंदन में ही उनके एक दोस्त ने उन्हें भगवद् गीता से परिचित कराया और इसका प्रभाव गांधी जी की अन्य गतिविधियों पर स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। वकालत की पढ़ाई के बाद जब गांधी भारत वापस लौटे तो उन्हें वकील के रूप में नौकरी प्राप्त करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वर्ष 1893 में दादा अब्दुल्ला (एक व्यापारी जिनका दक्षिण अफ्रीका में शिपिंग का व्यापार था) ने गांधी जी को दक्षिण अफ्रीका में मुकदमा लड़ने के लिये आमंत्रित किया, जिसे गांधी जी ने स्वीकार कर लिया और गांधी जी दक्षिण अफ्रीका के लिये रवाना हो गए। यह देख गया है कि गांधी जी के इस निर्णय ने उनके राजनीतिक जीवन को काफी प्रभावित किया।

महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर, 1869 (गुजरात के पोरबंदर में)
पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी
पिता का नाम करमचंद गांधी
माता का नाम पुतलीबाई
पत्नी का नाम कस्तूरबा
बच्चे चार पुत्र (हरिलाल गांधी, रामदास गांधी, देवदास गांधी और मणिलाल गांधी)
मृत्यु 30 जनवरी, 1948

दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी

दक्षिण अफ्रीका में गांधी ने अश्वेतों और भारतीयों के प्रति नस्लीय भेदभाव को महसूस किया। उन्हें कई अवसरों पर अपमान का सामना करना पड़ा जिसके कारण उन्होंने नस्लीय भेदभाव से लड़ने का निर्णय लिया। उस समय दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों और अश्वेतों को वोट देने तथा फुटपाथ पर चलने तक का अधिकार नहीं था, गांधी ने इसका कड़ा विरोध किया और अंततः वर्ष 1894 में 'नटाल इंडियन कांग्रेस' नामक एक संगठन स्थापित करने में सफल रहे। दक्षिण अफ्रीका में 21 वर्षों तक रहने के बाद वे वर्ष 1915 में वापस भारत लौट आए।

भारत में गांधी जी का आगमन

दक्षिण अफ्रीका में लंबे समय तक रहने और अंग्रेज़ों की नस्लवादी नीति के खिलाफ सक्रियता के कारण गांधी जी ने एक राष्ट्रवादी, सिद्धांतवादी और आयोजक के रूप में ख्याति अर्जित कर ली थी। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण गोखले ने गांधी जी को ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता हेतु भारत के संघर्ष में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया। वर्ष 1915 में गांधी भारत आए और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की रणनीति तैयार करने हेतु देश के गाँव-गाँव का दौरा किया।

गाँधी जी के सत्याग्रह

गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन और सत्याग्रह का जन्म दक्षिण अफ्रीका में ही हुआ था। सन 1906 में दक्षिण अफ्रीका सरकार ने भारतीयों के पंजीकरण के लिए एक अपमानजनक अध्यादेश जारी किया। इस समय गांधी जी दक्षिण अफ्रीका में ही थे। यह अध्यादेश गांधी जी व वहां पर रहने वाले अन्य भारतीयों को मंजूर नहीं था | सितंबर 1906 में जोहन्सबर्ग में गांधी जी के नेतृत्व में एक विरोध सभा का आयोजन हुआ। गांधी जी ने बिना किसी हिंसा के दक्षिण अफ्रीका में वहां के सुरक्षाकर्मियों के सामने अध्यादेश को आग के हवाले कर दिया। इस पर गांधी जी को लाठी चार्ज भी झेलना पड़ा लेकिन वह पीछे नहीं हटे।

क्या थी गाँधी जी की दक्षिण अफ्रीका की कहानी

7 जून, 1893 को ही महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा का पहली बार इस्तेमाल किया था। गांधीजी अपने एक क्लायंट का केस लड़ने के लिए डरबन से प्रीटोरिया जा रहे थे। गांधीजी जिस लॉ फर्म में कार्यरत थे, उसने उनके लिए फर्स्ट क्लास सीट बुक की थी।

रात के 9 बजे के करीब जब नटाल की राजधानी मैरित्जबर्ग पहुंचे तो एक रेलवे हेल्पर उनके पास बिस्तर लेकर आया। गांधीजी ने उनका शुक्रिया अदा किया और कहा कि उनके पास खुद का बिस्तर है। थोड़ी ही देर बाद एक दूसरे यात्री ने गांधीजी को गौर से देखा और कुछ अधिकारियों को साथ लेकर लौटा। कुछ देर सन्नाटा रहा। फिर एक अधिकारी गांधीजी के पास आया और उनसे थर्ड क्लास कंपार्टमेंट में जाने को कहा क्योंकि फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट में सिर्फ गोरे लोग ही सफर कर सकते थे। गांधीजी ने इस पर जवाब दिया, 'लेकिन मेरे पास तो फर्स्ट क्लास कंपार्टमेंट का टिकट है।'

 गांधीजी ने कंपार्टमेंट छोड़ने से इनकार कर दिया। इस पर उस अधिकारी ने पुलिस को बुलाने और धक्का देकर जबरन बाहर करने की धमकी दी। गांधीजी ने भी उससे कहा कि वह उनको चाहे तो धक्के मारकर बाहर कर सकता है लेकिन वह अपनी मर्जी से बाहर नहीं जाएंगे। उसके बाद उनको धक्का मारकर बाहर कर दिया गया और उनके सामान को दूर फेंक दिया गया। गांधीजी रात में स्टेशन पर ही ठंड से ठिठुरते रहे।

वास्तव में अन्याय के खिलाफ खड़े होने की यही हिम्मत तो सविनय अवज्ञा थी।

गांधी जी ने अपनी संपूर्ण अहिंसक कार्य पद्धति को ‘Satyagrah’ का नाम दिया। उनके लिये सत्याग्रह का अर्थ सभी प्रकार के अन्याय, अत्याचार और शोषण के खिलाफ शुद्ध आत्मबल का प्रयोग करने से था। गांधी जी का कहना था कि सत्याग्रह को कोई भी अपना सकता है, उनके विचारों में सत्याग्रह उस बरगद के वृक्ष के समान था जिसकी असंख्य शाखाएँ होती हैं। Champaran satyagrah और Bardoli Satyagrah गांधी जी द्वारा केवल लोगों के लिये भौतिक लाभ प्राप्त करने हेतु नहीं किये गए थे, बल्कि तत्कालीन ब्रिटिश शासन के अन्यायपूर्ण रवैये का विरोध करने हेतु किये गए थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलन ऐसे प्रमुख उदाहरण थे, जिनमें गांधी जी ने आत्मबल को सत्याग्रह के हथियार के रूप में प्रयोग किया।

शिक्षा पर गांधीवादी दृष्टिकोण

गांधी जी एक महान शिक्षाविद थे, उनका मानना था कि किसी देश की सामाजिक, नैतिक और आर्थिक प्रगति अंततः शिक्षा पर निर्भर करती है। उनकी राय में शिक्षा का सर्वोच्च उद्देश्य आत्म-मूल्यांकन है। उनके अनुसार, छात्रों के लिये चरित्र निर्माण सबसे महत्त्वपूर्ण है और यह उचित शिक्षा के अभाव में संभव नहीं है।

गांधी जी की शिक्षा अवधारणा

गांधी जी की शिक्षा अवधारणा को Basic Education के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने स्कूलों और कॉलेजों के पाठ्यक्रम में नैतिक और धार्मिक शिक्षा को शामिल करने पर बल दिया। गांधी जी ने शिक्षा की अवधारणा के निम्नलिखित उद्देश्य बताए:

  • अच्छे चरित्र का निर्माण करना
  • आदर्श नागरिक बनाना

गाँधी जी का आखिरी दिन

30 जनवरी 1948,  गांधी जब बिरला भवन में एक प्रार्थना सभा को संबोधित करने मंच पर जा रहे थे तो उन्हें गोली मार दी गई। 1919  से 1948 में उनकी मृत्यु तक, वे भारत के केंद्र में रहे और उस महान ऐतिहासिक नाटक के मुख्य नायक रहे जिसकी परिणति उनके देश की आजादी के रुप में हुई। उन्होंने भारत के राजनैतिक परिदृश्य का पूरा चरित्र बदल दिया। जो कभी अछूत माने जाते थे उनके लिए भी उन्होंने जो किया वो कम महत्व का नहीं था। उन्होंने लाखों लोगों को जाति अत्याचार और सामाजिक अपमान के बंधनों से मुक्त कर दिया। उनके व्यक्तित्व के नैतिक प्रभाव और अहिंसा की तकनीक की तुलना नहीं की जा सकती। और ना ही इसकी कीमत किसी देश या पीढ़ी तक सीमित है।

महात्मा गांधी शांति पुरस्कार

भारत सरकार सम्मानित सामाजिक कार्यकर्ताओं, विश्व के नेताओं एवं नागरिकों को वार्षिक महात्मा गांधी शांति पुरस्कार प्रदान करती है। गैर भारतीय पुरस्कार विजेताओं में नेल्सन मंडेला प्रमुख हैं, जो दक्षिण अफ्रिका में नस्लीय भेदभाव और अलगाव उन्मूलन करने के लिए संघर्ष के नेता रहे हैं। गांधी जी को कभी भी नोबल पुरस्कार नहीं मिला हालाकि उनका नामांकन 1937 से 1948 के बीच पाँच बार हुआ था। जब 1989 में चौदहवें दलाई लामा को यह पुरस्कार दिया गया तब समिति के अध्यक्ष ने इसे "महात्मा गांधी की स्मृति में श्रद्धांजलि" कहा था। महात्मा गांधी को फिल्मों, साहित्य और थिएटर में चित्रित किया गया है।

इसमें कोई शक नहीं है कि महात्मा गांधी अधिकारों की बराबरी में कर्तव्यों को बिठाते थे। उनका नियम तो यही था कि जब कर्तव्य निभाये जायेंगे, तो अधिकार भी मिलेंगे ही। अगर कर्तव्य नहीं निभाये जायेंगे, तो अधिकार मिलना संभव नहीं है।

 

Comments

Leave a reply

Populate Missing Fields
Thank you!. Your message is successfully sent...
Populate Missing Fields