- Wednesday, 8:02:49 PM, 09-Feb-2022
- Published By: Arnima Pathak
2022 मे होली कब है, तारीख व समय, मुहूर्त एवं महत्तव, होलिका दहन, निबंध | When is Holi in 2022, Festival of Holi 2022 in hindi, Date, time, history and significance, essay, holika dahan,

होली का त्योहार 2022 | Festival of Holi 2022 in Hindi
होली का त्योहार आने वाला है, यानि फिर से रूठों को मनाने का दिन। भारत देश त्योहारों का देश है, यहाँ भिन्न जाति के लोग भिन्न भिन्न त्यौहार को बड़े उत्साह से मनाया करते है और इन्ही त्यौहार में से एक त्यौहार है “होली”। इसका मुख्य उद्देशय आपस मे प्रेम और भाईचारे का प्रसार करना और खुशी की कामना करना है। भारत में सामान्तया त्यौहार हिंदी पंचाग के अनुसार मनाये जाते है। इस तरह होली फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह त्यौहार बसंत ऋतू के स्वागत का त्यौहार माना जाता है। ‘होली’ नाम राजा हिरण्यकश्यप की बहन के नाम पर पड़ा है, जिसका नाम होलिका था।
होली का त्योहार हिंदू सनातन वर्ष के अंतिम दिन मनाया जाने वाला त्योहार है। इस त्योहार के एक दिन पहले Holika Dahan किया जाता है। जिसमे मनुष्य से ये अपक्षा की जाती है कि वह अपने अहंकार और अज्ञानता को होलिका कि ज्वाला मे भस्म कर दे। और नए वर्ष में नई शुरुआत करें जिसके केंद्र में प्रेम, हर्षोल्लास और आपसी सौहार्द हो ।
होली का त्योहार देश में हर धर्म के लोग बड़े-धूमधाम के साथ मनाते हैं। होली के दिन सभी एक दूसरे को गले लगाकर होली की बधाइयाँ देते हैं। और एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं। इस दिन जो लोग एक दूसरे से रूठे होते हैं, वो भी गीले-शिकवे भूलकर तथा गले लगकर होली की बधाइयाँ देते हैं। इस दिन मीठे पकवान बनते हैं, जैसे- गुजिया, पूआ, मठरी, दही-बड़े इत्यादि।
जैसे हर त्योहार, अलग-अलग राज्य मे, अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है, ठीक वैसे ही Holi भी हर जगह अलग अलग तरीके से मनाई जाती है। जैसे मथुरा और वृंदावन की होली, यहा की होली पूरे देश में प्रसिद्ध हैं। प्रसिद्ध होने का कारण यह भी है की, यहा होली का त्योहार 15 दिनो तक मनाया जाता है।
आगे आप ये जानेंगे की होली क्यू मनाई जाती है, होलिका दहन की क्या कहानी है, मथुरा और वृन्दावन मे होली कैसे मनाई जाती है तथा होली किस दिन मनाई जाएगी इस साल।
होली का इतिहास व मनाए जाने का कारण (Mythological Story of Holi)
जैसे हर त्योहार की अपनी एक कहानी है, वैसे ही होली मनाने के पीछे भी एक कहानी छुपी है। जो धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है। ये कहानी विष्णु भगवान और उनके भक्त प्रह्लाद की है। जिसमे विष्णु जी नरसिंह का रूप लेकर हिरण्यकश्यप नामक राक्षस का वध करते हैं।
कहानी इस प्रकार है कि, हिरण्यकश्यप नाम के एक राक्षस ने अपनी तपस्या से ब्रह्मा जी को अत्यंत प्रसन्न किया किंतु ब्रह्मा जी द्वारा अमर होने का वरदान न दिए जाने के बाद भी उसने यह वरदान प्राप्त कर लिया कि उसकी मृत्यु न कोई मनुष्य कर सके न कोई जानवर, न रात में हो न दिन में , न घर में हो न बाहर, न पृथ्वी पर हो न आसमान में। यह लगभग अमर होने जैसा ही वरदान था और इसके कारण हिरण्यकश्यप में इतना अहंकार आ गया कि उसने अपने आप को भगवान घोषित कर दिया और अपने संपूर्ण राज्य में किसी भी अन्य देवता की पूजा पाठ पर रोक लगा दी।वह चाहता था कि सब उसी कि जय जयकार करें। इसलिए वह देवताओं से घृणा करता था और उसे देवताओं मे से सबसे ज़्यादा नफरत भगवान विष्णु से थी। जो भी किसी और देवता का पूजन करता हिरण्यकश्यप उसे मरवा देता था।
किन्तु किस्मत का खेल तो देखो, उस राक्षस राजा के घर एक प्रह्लाद नाम के पुत्र का जन्म हुआ। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह सिर्फ उनही कि पुजा किया करता था। यह बात हिरण्यकश्यप को बिलकुल पसंद नहीं थी, वह कई तरह से अपने पुत्र को डराता था और भगवान विष्णु की उपासना करने से रोकता था, पर प्रह्लाद एक नहीं सुनता, वह अपने भगवान की भक्ति में लीन रहता था। अपने ही पुत्र को सजा देते देते थक जाने के बाद, गुस्से मे हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रह्लाद को मरवाने कि योजना बनाई।
हिरण्यकश्यप की एक बहन थी, जिसका नाम Holika था। Holika को वरदान प्राप्त था की उसे अग्नि नही जला सकती। अथार्थ वह आग पर विजय प्राप्त कर सकती थी। हिरण्यकश्यप ने Holika से अग्नी की वेदी पर प्रहलाद को साथ लेकर बैठने को कहा। प्रहलाद अपनी बुआ के साथ वेदी पर बैठ गया और अपने भगवान की भक्ति में लीन हो गया। तभी अचानक होलिका जलने लगी और आकाशवाणी हुई, जिसके अनुसार होलिका को याद दिलाया गया, कि अगर वह अपने वरदान का दुरूपयोग करेगी, तब वह खुद जल कर राख हो जाएगी और ऐसा ही हुआ। प्रहलाद का अग्नी कुछ नहीं बिगाड़ पाई और होलिका जल कर भस्म हो गई। इस तरह प्रह्लाद की भक्ति जीत गई। इसके बाद में, भगवान विष्णु नरसिंह के रूप में प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप को अपने पंजों से मारकर अपनी गोद में रख लिया। हिरण्यकश्यप के मरने के बाद प्रहलाद राजा बने और युगों तक अच्छे शासक की भूमिका के बाद आज भी वह ध्रुव तारे के रूप में अमर हैं। इस तरह सारे वासी होलिका और हिरण्यकश्यप की कठोरता से मुक्त हो गए। उसके बाद प्रजा ने हर्षोल्लास से उस दिन खुशियाँ मनाई। सारे वासियों ने एक-दूसरे पर होलिका की राख डालकर इस अवसर का जश्न मनाया। होलिका दहन की शुरुवात यही से हुई थी।
होलिका दहन का बहुत सारगर्भित संदेश है कि मनुष्य को अहंकार नहीं पालना चाहिए क्योंकि अहंकार का अंत होना निश्चित होता है। होलिका दहन अहंकार और आस्था के बीच का युद्ध है, जिसमें अहंकार अपनी जलाई हुई आग में स्वयं भस्म हो जाता है किंतु आस्था का कवच जीवन में सार्थकता प्रदान करता है। Holika दहन यानि बुराई पर अच्छाई की जीत के कारण ही इसके अगले दिन होली यानि रंगों का त्योहार मनाया जाता है।
होलिका दहन वाले दिन, स्त्रियाँ होलिका की पूजा दिन में करती है और शाम को पुरुष लोग मिलकर होलिका दहन करते है। परिवार के सभी सदस्य को उबटन (हल्दी, सरसों व दही का लेप) लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है की उस दिन उबटन लगाने से व्यक्ति के सभी रोग दूर हो जाते हैं। और उस उबटन को आग मे दाल दिया जाता है। आग में लकड़ी जलने के साथ लोगों के सभी विकार भी जल कर नष्ट हो जाते हैं।
2022 होलिका दहन का मुहूर्त समय और होली का दिन (Date and Time of Holika and Holi)
साल 2022 में होली 18 मार्च, शुक्रवार के दिन मनाई जाएगी, इसे हम धुलैंडी और बड़ी होली भी कहते है। 2022 की होली के लिए होलिका दहन 17 मार्च को किया जायेगा, जिसे बहुत सी जगह पर छोटी होली भी बोला जाता है।
होलिका दहन मुहूर्त - 9 बजकर 20 मिनट से 10 बजकर 31 मिनट तक
कुल अवधि – होलिका दहन लगभग 1 घंटे 11 मिनट तक है
भद्रा पूंछ - 09:20:55 से 10:31:09 तक
भद्रा मुख - 10:31:09 से 00:28:13 बजे तक
होली के दिन लोग क्या करते है (What people’s do on Holi)
होली के दिन सुबह नहाने के बाद रंग और फूलों से ईश्वर के साथ होली खेली जाती है। गुलाल से ईश्वर को तिलक किया जाता है। उसके बाद अपने पड़ोसियों, संबंधियों तथा दोस्तों से मिला जाता है। सभी एक दूसरे को गले लगाकर होली की शुभकामनए देते है, और रंग लगाते हैं। इस दिन पुआ जरूर बंता है और साथ ही गुजिया, मठरी, दही बड़े इत्यादि भी बनते हैं। कुछ लोग होली पानी मे रंग डालकर, और उस पानी से एक दूसरे के ऊपर फेंक के भी मजे करते हैं। बच्चे छोटे छोटे गुबारों मे पानी भरकर आने जाने वाले लोगों पर फेंकते हैं। और पिचकारी मे पानी भरकर मस्ती करते हैं। इस तरह होली के रंग बिरंगे पर्व को हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है।
होली का महत्व (Importance of Holi)
रंगों के उत्सव की शुरुआत संभवत उस समय से ही हो गई थी जब रंगों का ज्ञान और प्रचलन शुरू हुआ था। दुनिया मे ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं, जिनसे पता चलता है कि अयोध्या में जब राम का राज्य था उस समय भी होली के रंगों का यह त्यौहार प्रचलित था। तथा कृष्ण काल में रंगों का यह उत्सव विभिन्न रूपों में प्रेम का पर्याय बन गया और आज भी ब्रज की होली संसार के प्रसिद्ध प्रेम पर्वों में से एक है।
ब्रजभूमि की लठमार होली (Lathmar Holi of brizbhumi)
“सब जग होरी या ब्रज होरा” अर्थात सारे जग से अनूठी ब्रज की होली है। ब्रज के गांव बरसाना में होली प्रेम का प्रतीक माना जाता है। इस होली में नंदगांव के पुरुष और बरसाना की महिलाएं भाग लेती हैं क्योंकि श्री कृष्ण नंदगांव से थे और राधा बरसाना से। जहां पुरुषों का ध्यान भरी पिचकारी से महिलाओं को भिगोने में रहता है वहीं महिलाएं खुद का बचाव और उनके रंगों का उत्तर उन्हें लाठियों से मार कर देती है। सच में यह अद्भुत दृश्य होता है।
मथुरा और वृंदावन की होली (Holi of Mathura and Vrindavan)
मथुरा और वृंदावन में होली की अलग छटा नज़र आती है। यहां होली की धूम 15 दिन तक छाई रहती है। बरसाना में होली मानाने के बाद अगले दिन नंदगाँव (कृष्णा के गाँव) में इसी तरह के खास उत्सवों के साथ होली मनाई जाती है। नंदगाँव का नाम धार्मिक ग्रंथों में शामिल है बताया जाता है कि इस गाँव में भगवान कृष्ण ने अपने बचपन का सबसे ज्यादा समय बिताया था। कहा जाता है कि जब कृष्ण राधा पर रंग डालने के लिए बरसाना गए थे तो इसके बाद राधा गोपियों के साथ कृष्ण पर रंग डालने के लिए अगले दिन नंदगांव आई थी। इसलिए होली उत्सव बरसाना में मनाने के बाद नंदगाँव में मनाया जाता है।
वृंदावन में बांके-बिहारी मंदिर की होली (Holi of Vrindavan Baanke Bihari Temple)
वृंदावन में स्थित बांके-बिहारी मंदिर होली के उत्सवों का आनंद लेने के लिए एक बहुत ही खास जगह है क्योंकि यहां सप्ताह भर होली का उत्सव मनाया जाता है। होली के इन रंगीन दिनों में बिहारीजी (कृष्ण का दूसरा नाम) की मूर्ति को सफेद रंग के कपड़े पहनाते हैं और होली खेलने के लिए उन्हें अपने भक्तों के करीब लाया जाता है। बता दें कि वृंदावन को होली रंगीन पानी और गुलाल के साथ खेली जाती है जो फूलों और केसर जैसे कार्बनिक पदार्थों से मिलाकर बनाया जाता है। इन रंगों के खेल में गोस्वामी (मंदिर में पुजारी) बाल्टी, पानी बंदूक आदि का उपयोग करके सभी पर रंग छिड़कते हैं, इसके बाद पूरा माहौल संगीत (भजन) के साथ और भी जीवंत हो जाता है और लोग रंगों का आनंद लेते हुए धुनों पर नाचने लगते हैं।
महाराष्ट्र और गुजरात की मटकी फोड़ होली (Holi of Maharashtra)
महाराष्ट्र और गुजरात में होली पर श्री कृष्ण की बाल लीला का स्मरण करते हुए होली का पर्व मनाया जाता है। महिलाएं मक्खन से भरी मटकी को ऊँचाई पर टांगती हैं इन्हें पुरुष फोड़ने का प्रयास करते हैं और नांच गाने के साथ होली खेलते हैं।
पंजाब का “होला मोहल्ला” (Holi of Punjab)
पंजाब में होली का यह पर्व पुरुषों के शक्ति के रूप में देखा जाता है। होली के दूसरे दिन से सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान “आनंदपुर साहेब” में छः दिवसीय मेला लगता है। इस मेले में पुरुष भाग लेते हैं तथा घोड़े सवारी, तीरंदाजी जैसे करतब दिखाते हैं।
बंगाल की “डोल पूर्णिमा” होली (Holi of Bengal)
बंगाल और उड़ीसा में डोल पूर्णिमा के नाम से होली प्रचलित है। इस दिन पर राधा कृष्ण की प्रतिमा को डोल में बैठा कर पूरे गांव में भजन कीर्तन करते हुए यात्रा निकाली जाती है और रंगों से होली खेली जाती है।
मणिपुर की होली (Holi of Manipur)
होली पर मणिपुर में “थबल चैंगबा” नृत्य का आयोजन किया जाता है। यहां यह पर्व पूरे छः दिवस तक नाच-गाने व अनेक तरह के प्रतियोगिता के साथ चलता रहता है।
होली मे बरतें सावधानिया (Take precautions in Holi)
होली रंगों का त्योहार है, इसलिए होली के लिए रंग या गुलाल खरीदने से पहले ध्यान रखे कि रंगो मे मिलावट होती है जिसकी वजह से skin infection होना का चान्स रहता है, इसलिए Organic रंगों का ही प्रयोग करें।
होली मे अक्सर लड़कियों के साथ छेड़खानी हो जाती है, इसलिए अपना पूरा ध्यान रखे और अपनों के साथ रहें।
होली मे भांग मे अन्य नशीले पदार्थो का मिलना भी आम है, इसलिए इस तरह की चीजों से बचे रहें।
घर के बाहर कोई भी चीज़ खाने के पहले एक बार परख लेना चाहिए, क्यूंकी खाने कि चीजो मे नशीले पदार्थो की मिलावट हो सकती है।
सावधानी से एक दुसरे को रंग लगाये, अगर कोई ना चाहे तो जबरजस्ती ना करे। होली जैसे त्योहारों पर लड़ाई झगड़ा भी बढने लगता है।
चाहे कोई भी त्यौहार हो, उसमे मानव जीवन के लिए बहुत उपयोगी संदेश छुपे होते हैं , जिन्हें भावी पीढ़ियों तक पहुंचाने के लिए इन त्योहारों का बहुत बड़ा योगदान होता है । हमने इस लेख मे होली से जुड़ी कहानी को बताया है। आपको ये लेख कैसा लगा, हमे comment करके जरूर बताएं।
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